*_1.सी.एस.आई.आर. ने स्‍वास, सफल और स्‍टार नामक कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे विकसित किए हैं।_*
सी.एस.आई.आर. के वैज्ञानिकों ने कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे विकसित किए हैं जो न केवल पर्यावरण अनुकूल हैं बल्कि परंपरागत पटाखों की तुलना में 15-20% तक सस्ते हैं।
इन पटाखों के नाम क्रमश: सेफ वाटर रिलीसर (एस. डब्‍ल्‍यू.ए.एस.), सेफ मिनिमल एल्‍युमिनियम (एस.ए.एफ.ए.एस.) और सेफ थर्माइट क्रैकर (एस.टी.ए.आर.) हैं।
एस.डब्ल्यू.ए.एस. पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3) और सल्‍फर का प्रयोग नहीं किया गया है जिसके परिणामस्‍वरूप SO2 और NOx के कणिका तत्‍वों में (30-35 प्रतिशत) तक की कमी आयी है।
स्टार पटाखों में भी KNO3 और सल्‍फर का प्रयोग नहीं किया गया है जिसके परिणामस्‍वरूप SO2 और NOx के कणिका तत्‍वों में (30-35 प्रतिशत) तक की कमी आयी है।
सफल पटाखों में एल्‍युमिनियम की बहुत कम मात्रा (केवल शुरू करने हेतु फ्लैश पाउडर में) का प्रयोग किया गया है, जिसके परिणामस्‍वरूप वाणिज्यिक पटाखों की तुलना में कणिका तत्‍वों में (35-40) प्रतिशत की महत्‍वूपर्ण कमी आयी है।
शोधकर्ताओं ने एल्यूमीनियम को मैग्नीशियम से प्रतिस्‍थापित करने का निर्णय लिया है, उन्‍होंने ऐसा इस आधार पर किया है कि यह ज्‍वलन तापमान को कम करता है और इसके परिणामस्‍वरूप पटाखों से उत्‍पन्‍न होने वाले कणिका तत्‍वों में कमी आएगी।
संबंधित जानकारी

नए पटाखों का विकास दो राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाओं- कराईकुडी, तमिलनाडु आधारित केंद्रीय वैद्युतरसायन अनुसंधान संस्‍थान (सी.ई.सी.आर.आई.) और नागपुर आधारित राष्‍ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान (एन.ई.ई.आर.आई.) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
सी.ई.सी.आर.आई. के शोधकर्ताओं ने ‘जिलजिल’ और परमाणु बम कहे जाने वाले फूलदान के रासायनिक फार्मूलेशन को संशोधित करके हरित पटाखें विकसित किए हैं।
सी.एस.आई.आर.-एन.ई.ई.आर.आई. के संदर्भ में जानकारी-

सी.एस.आई.आर.- राष्‍ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्‍थान, एक शोध संस्थान है जो भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत बनाया और वित्त पोषित किया गया है।
पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एन.ई.ई.आर.आई. एक अग्रणी प्रयोगशाला है और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद का हिस्सा है।
इसे वर्ष 1958 में नागपुर में जल आपूर्ति, सीवेज निपटान, संक्रमणीय बीमारियों, औद्योगिक प्रदूषण और व्‍यवसायिक बीमारियों के निपटान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किया गया था। यह स्‍वतंत्रता पूर्व भारत में सामान्‍यत: पाई जाने वाली समस्‍याएं थी।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 3 – विज्ञान एवं तकनीकि

स्रोत- डान टू अर्थ

*_2.आरे का चिपको आंदोलन_*
मुंबई के नागरिक शहर के अंतिम हरित क्षेत्र आरे को बचाने हेतु बी.एम.सी. और एम.एम.आर.सी. से पूरे प्रयासों के साथ लड़ रहे हैं।
मेट्रो-3 कार शेड परियोजना के लिए गोरेगांव में आरे मिल्‍क कॉलोनी में 2,702 पेड़ों को काटने के बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के प्रस्ताव के खिलाफ मध्य अक्टूबर माह में नागरिकों और कार्यकर्ताओं के द्वारा हजारों सुझाव और आपत्तियां दर्ज करायी गई हैं।
संबंधित जानकारी

आरे, एक समय वनों के पर्णपाती विस्‍तार का हिस्‍सा था, जो अब बगल में स्थित संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान और छोटी पहाड़ियों तक ही सीमित है।
जब आरे डेयरी सहकारी का निर्माण किया गया था तो घास के मैदान, झाडि़यां, कच्‍छ भूमि और जल निकायों के खुले पारिस्थिकी तंत्र का निर्माण करने हेतु जंगल की मोटाई कम कर दी गई थी। जिससे प्रजातियों के रूचिकर संयोजन को शरण मिलती थी।
बड़े खुले पैरा घास के मैदान मुनियास, ड्रोंगो के मैदानों और सफेद बगुलों का पालन पोषण कर रहे हैं, जिन्हें कार शेड के लिए प्रस्तावित किया गया है।
इन घास के मैदानों को पोषित करने वाली नालियों में देशी मछली प्रजातियों, केकड़े, झींगा और चेकर्ड कीलबैक पानी के सांप रहते हैं जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत अनुसूची II प्रजातियों के आधार पर संरक्षित हैं।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 3 – पर्यावरण

स्रोत- इंडियन एक्‍सप्रेस

*_3.ओडिशा ने अपने तटों के लिए आपदा चेतावनी प्रणाली की शुरूआत की है।_*
ओडिशा सरकार ने बहु प्रतीक्षित प्रारंभिक चेतावनी प्रसार प्रणाली की शुरूआत की है।
यह भारत में इस प्रकार की पहली तकनीक है जो एक साथ तटीय समुदायों और मछुआरों को सायरन टावरों के माध्यम से आने वाले चक्रवात और सुनामी के बारे में चेतावनी देने में मदद करती है।
ई.डब्ल्यू.डी.एस., केंद्रीय और राज्य सरकारों का एक सहयोगी प्रयास है और इसे विश्व बैंक की सहायता से लागू किया गया है।
राज्‍य के 480 कि.मी. लंबे तट के समांतर लगाए गए 122 टावरों से सायरन बजेंगे यदि भुवनेश्वर में राज्य आपातकालीन केंद्र में एक बटन दबाया जाए।
संबंधित जानकारी

इसमें सैटेलाइट आधारित मोबाइल डेटा वॉयस टर्मिनल, डिजिटल मोबाइल रेडियो, मास मैसेजिंग सिस्टम और अंतरकार्यकारिता हेतु यूनीवर्सल कम्‍यूनिकेशन इंटरफ़ेस जैसी तकनीकें शामिल हैं।
यह राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम न्‍यूनीकरण परियोजना के अंतर्गत अंतिम-मील कनेक्टिविटी कार्यक्रम का हिस्सा है और इसका उद्देश्‍य चक्रवात आने की स्थिति में समुद्र के पास रहने वाले अंतिम व्यक्ति को सूचित करना है।
गहरे समुद्रों में मछली पकड़ने वाले मछुआरों तक भी ई.डब्‍ल्‍यू.डी.एस. के माध्‍यम से उनके मोबाइल फोन पर मास एस.एम.एस के द्वारा संदेश पहॅुंचाया जा सकता है।
ई.डब्‍ल्‍यू.डी.एस. के अंतर्गत बालासोर, भद्रक, जगतसिंहपुर, केंद्रपारा, पुरी और गंजम नामक छह तटीय जिलों को कवर किया गया है।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 3 – आपदा प्रबंधन

स्रोत- द हिंदू

*_4.भारत का सबसे बड़ा ड्राइ डॉक कोचीन शिपयार्ड में आने वाला है।_*
यह कोचीन शिपयार्ड में जहाजों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव के लिए भारत का सबसे बड़ा ड्राइ डॉक है।
यह ड्राइ डॉक, सागरमाला (बंदरगाहों के निर्माण और आधुनिकीकरण हेतु कार्यक्रम) के अंतर्गत ‘मेक इन इंडिया’ पहल को गति प्रदान करेगा और वैश्विक जहाज निर्माण में भारत के हिस्से को 2% तक बढ़ाएगा।
यह डॉक एल.एन.जी. कैरियर, ड्रिल जहाज, जैक-अप जहाज की रस्सियों, बड़े ड्रेजरों, भारतीय नौसेना के लिए विमान वाहक और उच्च कोटि शोध जहाजों जैसे विशेष और तकनीकी रूप से उन्नत बड़े जहाजों का निर्माण करने में सक्षम होगा।
संबंधित जानकारी

वर्तमान में भारत वैश्विक जहाज निर्माण बाजार में 66% की हिस्सेदारी रखता है।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 2 – ढांचागत विकास

स्रोत-पी.आई.बी.

*_5.स्वच्छ न्‍यायालय परियोजना_*
स्वच्छ न्यायालय परियोजना का उद्देश्य न्‍यायालयों में सामान्‍य साफ-सफाई का ख्‍याल रखना और बाथरूम का निर्माण एवं रख-रखाव करना है।
यह कचरे को प्रकल्‍पित करने और पुराने मुकदमों की फाइलों की छटांई हेतु आवश्‍यक तंत्र को भी तैयार करता है।
यह महिला, पुरूषों और विकलांगो के लिए उपयोग अनुकूलतम शौचालय की सुविधा भी प्रदान करेगा।
यह परियोजना प्रमुख रूप से केंद्र सरकार की प्रमुख योजना स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज पर है।
इस परियोजना के दायित्‍व का निर्वाह नीति आयोग, केंद्रीय पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मंत्रालय के साथ न्याय विभाग द्वारा निभाया जाएगा।
संबंधित जानकारी

इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत सभी सर्वोच्‍च न्‍यायालय, सभी उच्च न्यायालय और 3,388 अधीनस्थ न्‍यायालय शामिल होंगे।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 2 – सरकारी योजना

स्रोत-पी.आई.बी.

*_6.आई.एन.एफ. संधि_*
अमेरिका, शीत युद्ध के समय के डर को वापस लाने हेतु 1987 माध्‍यमिक-क्षेत्र परमाणु बल संधि से बाहर निकलने की योजन बना रहा है।
यह संधि वर्ष 1987 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा समाप्त की गई थी।
आई.एन.एफ. संधि, वाशिंगटन और मॉस्को के मध्‍य एक द्विपक्षीय समझौता था।
आई.एन.एफ. संधि के अंतर्गत, अमेरिका और सोवियत संघ ने 500 से 5,500 कि.मी. के बीच की रेंज वाली किसी भी जमीन-आधारित बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों को विकसित, उत्पादित, रखने अथवा तैनात नहीं करने पर सहमति जतायी थी।
इस संधि में समान श्रेणी में हवा से मार करने वाली और समुद्र-आधारित मिसाइल प्रणाली को शामिल नहीं किया गया था।
एस.एस.-20 बैलिस्टिक मिसाइलों की रूसी तैनाती और पर्सिंग-2 रॉकेट के साथ अमेरिकी प्रतिक्रिया पर यूरोप में वर्ष 1980 में भारी जनता उन्‍माद के परिणामस्‍वरूप यह संधि लागू की गई थी।
आई.एन.एफ. संधि, यूरोप में होने वाले परमाणु युद्ध के डर को दूर करने में मदद करती थी।
यह संधि वाशिंगटन और मॉस्को के मध्‍य थोड़ा विश्वास पैदा करती थी और शीत युद्ध के अंत में भी इसका योगदान रहा था।
संबंधित जानकारी

समस्या क्‍या हैं?

अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, चीन के विशाल मिसाइल शस्त्रागार का लगभग 90 प्रतिशत हिस्‍सा- अनुमानित रूप से लगभग 2,000 रॉकेट हैं- मध्यवर्ती सीमा में है और यदि बीजिंग आई.एन.एफ. संधि का हिस्सा होता तो यह अवैध होगा।
विशाल चीनी भूमि आधारित मध्यवर्ती रेंज मिसाइल बलों ने पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में तैनात अमेरिकी नौसेना के जहाजों को धमकी दी और जापन में अमेरिकी सैन्य अड्डों को निशाना बनाया था। चीनी मिसाइलों के प्रति प्रशांत क्षेत्र में तैनात अमेरिकी सैना की कमजोरी, इसके बदले में यह अपने एशियाई सहयोगियों के लिए अमेरिकी सुरक्षा प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
अमेरिकी सैन्य नेतृत्व लंबे समय से प्रयासरत था कि आई.एन.एफ संधि द्वारा एशिया में अमेरिकी मिसाइल बलों पर लगाई गई सीमाओं को हटाया जाएं।
भारत के संदर्भ में संधि

इनके मिसाइल कार्यक्रम की प्रकृति की तुलना में हथियार नियंत्रण कूटनीति के साथ भारत की समस्या कम होने लगी हैं।
यदि अमेरिका, चीन को राकने हेतु अपनी क्षमताओं को बढ़ाने हेतु एशिया में एक नया आई.एन.एफ. तैनात करता है तो बीजिंग प्रतिक्रिया देने हेतु बाध्‍य है।
मॉस्को और बीजिंग ने पहले से ही हाइपर्सोनिक सिस्टम के विकास में निवेश किया है।
भारत में भी हाइपर्सोनिक मिसाइलों पर शोध चल रहा है- सुपरसोनिक ब्राह्मोस मिसाइलों का निर्माण करने के लिए रूस के साथ सहयोग में कार्य चल रहा है और यह मिसाइल कुछ हद तक स्‍वदेशी भी है, यह मिसाइल, ध्वनि की दोगुनी से अधिक गति से हमला करेगी।
इस समस्या के कारण, मॉस्को उन्नत सैन्य प्रणाली, बढ़ती जांच और दबाव के दायरे में आ जाएगी।
रूस से एस-400 के अधिग्रहण पर हाल ही में हुए विवाद का परिणाम है जो भारत की आवश्यकता है।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 2 –अंतर्राष्‍ट्रीय संबंध

स्रोत- न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स

*_7.केंद्र ने प्राथमिक आधार पर ऑपरेशन ग्रीन को सहमति प्रदान की है।_*
इस योजना को उच्च उत्पादन वाले क्षेत्रों में टमाटर, प्याज और आलू के वार्षिक मूल्य संकट को नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया था।
इस ऑपरेशन की घोषणा वर्ष 2018 के बजट सत्र के भाषण के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा की गई थी और दावा किया गया था कि यह ऑपरेशन बागवानी फसल उत्पादकों को समर्थन प्रदान करेगा।
इस योजना का उद्देश्य सब्जियों को अधिक उत्‍पादन वाले क्षेत्रों से कम उत्‍पादन वाले क्षेत्रों में भेजना है और शेल्फ लाइफ को बढ़ाने के लिए भंडारण प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने हेतु ढांचागत संरचना का निर्माण करना है।
सरकार ने चयनित अधिशेष क्षेत्रों में मूल्य श्रृंखला और प्रसंस्करण उद्योग बनाने का निर्णय लिया है।
संबंधित जानकारी

ऑपरेशन ग्रीन क्या है?

ऑपरेशन ग्रीन में अल्पावधि और दीर्घकालिक घटक हैं।
अल्पकालिक घटक के लिए बजट में 50 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इस बजट के अंतर्गत, शीर्ष उत्‍पादनों के परिवहन और भंडारण की सुविधा हेतु सरकार, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (एन.ए.एफ.ए.डी.) के साथ 50 प्रतिशत लागत साझा करेगी।
दीर्घकालिक घटक हेतु बजट में 450 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, इसका उद्देश्‍य मूल्य श्रृंखला, कोल्‍ड स्‍टोरेज, पैकेजिंग, छटॉईं, ग्रेडिंग और प्रसंस्करण उद्योग को विकसित करना है।
समिति ने सुझाव दिया कि संपदा जैसी समान योजनाओं और कृषि प्रक्रियाओं के लिए बुनियादी ढांचे, पूर्व और भविष्‍य के संबंधों का निर्माण, खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमताओं का निर्माण/ विस्तार जैसी नई योजनाओं से भी अतिरिक्‍त निधियां प्राप्‍त की जा सकती हैं।
संपदा एक योजना है जिसमें वर्तमान में चल रही योजनाएं (मेगा फूड पार्क, एकीकृत शीत श्रृंखला और मूल्य वृद्धि बुनियादी ढांचा, खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता आश्वासन बुनियादी ढांचा आदि) शामिल हैं।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 2 – कृषि योजना

स्रोत- डाउन टू अर्थ

*_8.ट्रेन 18: देश की पहली इंजन-लेस ट्रेन शुरू की गई है।_*
भारत की पहली इंजन-लेस सेमी-हाई स्पीड ट्रेन- “ट्रेन 18” – इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आई.सी.एफ.) द्वारा शुरू की गई है।
यह ट्रेन अंततः शताब्दी एक्सप्रेस को अंतर-शहर यात्रा के लिए प्रतिस्‍थापित करेगी।
16-कोच सेमी-हाई स्पीड ‘ट्रेनसेट’ को 160 कि.मी./ घंटे की अधिकतम क्रियान्‍वन गति के लिए डिज़ाइन किया गया है।
यह बिना लोकोमोटिव (इंजन) की पहली लंबी दूरी की रेल है।
सभी कोच एकीकृत पुल प्लेटों के साथ पूरी तरह सील किए गए गैंगवेज से जुड़े हुए हैं, जहां यात्री एक कोच से दूसरे कोच में स्‍वतंत्र रूप से जा सकते हैं।
अब रेलवे एक अन्‍य परियोजना पर ध्यान केंद्रित करेगा- ट्रेन 20 –यह अगली पीढ़ी एल्यूमीनियम-बॉडी स्लीपर क्लास ट्रेन है जो वर्तमान नेटवर्क पर चल रही राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों को प्रतिस्थापित करेगी और इसे वर्ष 2020 तक शुरू करने की उम्मीद है।
टॉपिक- जी. एस. पेपर 3 – विज्ञान एवं तकनीकि

स्रोत- इकानॉमिक टाइम्‍स

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *