*✴️🔷⭕️1.जोर पकड़ेगी ऊर्जा पर भारत की कूटनीति*

• कूटनीति में एक पुराना सिद्धांत है, जब दुनिया में अनिश्चितता बढ़ रही हो तो सबसे पहले अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करो। क्या भारत भी कुछ ऐसी ही अनिश्चितताओं को देख रहा है? तभी उसने अपनी ऊर्जा कूटनीति पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। खाड़ी क्षेत्र के पांच देशों के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्र में ऊर्जा सुरक्षा एक अहम एजेंडा था।
• अब अगले कुछ हफ्तों के दौरान अमेरिका के ऊर्जा सचिव रिक पेरी, ईरान के राष्ट्रपति रोहानी और सऊदी अरब की सबसे बड़ी तेल कंपनी सऊदी अरामको के मुखिया भारत दौरे पर आ रहे हैं। इन तीनों के साथ होने वाली बातचीत सीधे तौर पर देश की ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी होगी।
• पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेद्र प्रधान के मुताबिक, ‘अभी ऊर्जा सुरक्षा के लिए अगला कुछ हफ्ता काफी व्यस्त रहेगा। ईरान के राष्ट्रपति के साथ फरजान-बी ब्लॉक, गैस पाइपलाइन समेत सभी मुद्दों पर बात होगी। उसी तरह से अमेरिका के ऊर्जा सचिव के साथ काफी व्यापक एजेंडा है।’
• प्रधान का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ व्यक्तिगत रिश्तों का असर भी ऊर्जा क्षेत्र पर दिख रहा है। मसलन, दो दिन पहले अबूधाबी नेशनल ऑयल कंपनी के तेल ब्लॉक में 10 फीसद हिस्सेदारी को लेकर जो समझौता हुआ है वह मोदी और क्राउन प्रिंस मोहम्मद अल नेहयान के बीच प्रगाढ़ होते रिश्तों का ही परिणाम है। अभी तक भारतीय कंपनियों को खाड़ी के किसी भी देश के तेल ब्लॉक में हिस्सेदारी नहीं मिली थी।
• पेट्रोलियम मंत्रलय के सूत्रों के मुताबिक, ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी के साथ होने वाली बातचीत से उम्मीद की जानी चाहिए। हाल के वर्षो में तेल एवं गैस क्षेत्र में आपसी रिश्तों में जो तनाव पैदा हुआ है वह खत्म हो जाएगा। भारत ने पिछले वर्ष ईरान से तेल खरीदने में काफी कटौती कर थी। इस पर ईरान ने ऐतराज जताते हुए भारतीय तेल कंपनी ओएनजीसी को फरजाद स्थित गैस ब्लॉक में हिस्सेदारी देने की प्रक्रिया सुस्त कर दी है।
• अब माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच कुछ बीच का रास्ता निकल आया है तभी ईरान के राष्ट्रपति भारत यात्र पर आने को तैयार हुए हैं। भारतीय तेल कंपनियों ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि वे ईरान से ज्यादा तेल खरीदने को तैयार हैं। ऐसे में फरजाद-बी गैस ब्लॉक में भारतीय निवेश को भी हरी झंडी मिलने के संकेत हैं।
• रोहानी गुरुवार को दो दिवसीय दौरे पर भारत आएंगे।1भारत के लिए अमेरिकी ऊर्जा सचिव की आगामी यात्र भी बेहद अहम होगी। ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में दोनो देशों के बीच ऊर्जा सहयोग को लेकर कोई व्यापक विमर्श नहीं हुआ है जबकि ओबामा प्रशासन के दौरान दोनों देशों ने इस क्षेत्र के लिए भारी भरकम एजेंडा बनाया था।
• हालांकि इस दौरान भारत ने अमेरिका से बड़े पैमाने पर ऊर्जा की खरीद शुरू कर दी है। सचिव रिक पेरी की यात्र के दौरान कोयला, आण्विक और हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में परस्पर सहयोग पर बात होगी।

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*🌐🔷2. भारत-प्रशांत क्षेत्र पर है चीन की नजर :* विवादित दक्षिण चीन सागर से गुजरेगा ब्रिटिश युद्धपोत

• अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन ने कांग्रेस को बताया है कि ‘‘भारत-प्रशांत क्षेत्र’ को अपने फायदे के लिहाज से पुन: व्यवस्थित करने के लिए चीन अपने पड़ोसियों पर दबाव बना रहा है।

• पेंटागन ने कहा, चीन की ओर से अपनी आर्थिक एवं सैन्य आक्रामकता बनाए रखने और दीर्घकालिक रणनीति के जरिए सत्ता का प्रभाव दिखाने के कारण यह एक ऐसा सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम जारी रखेगा जो निकट भविष्य में भारत-प्रशांत क्षेत्रीय वर्चस्व और अमेरिका को विस्थापित करने की कोशिश करेगा ताकि भविष्य में वैश्विक प्रमुखता प्राप्त कर सके।

• वित्तीय वर्ष 2019 के लिए अपने वार्षिक रक्षा बजट में पेंटागन ने कहा, चीन सैन्य आधुनिकीकरण, प्रभाव डालने वाले अभियानों और आवामक अर्थशास्त्र का इस्तेमाल कर पडोसी देशों पर दबाव बना रहा है ताकि भारत-प्रशांत क्षेत्र को अपने फायदे में पुन:व्यवस्थित कर सके। चीन समूचे दक्षिण चीन सागर पर संप्रभुता का दावा करता है।

• वियतनाम, मलयेशिया, फिलीपींस, ब्रूनेई और ताइवान इसके उलट दावा करते हैं।पूर्वी चीन सागर में भी चीन का जापान के साथ क्षेत्रीय विवाद है। पेइचिंग ने कई द्वीपों और रीफों को बनाकर उन पर सैन्य नियंतण्र कायम कर लिया है। दोनों क्षेत्र खनिज, तेल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में समृद्ध माने जाते हैं।
• वैश्विक व्यापार के लिए भी वे अहम हैं।पेंटागन के मुताबिक, अमेरिकी समृद्धि और सुरक्षा के लिए प्रमुख चुनौती संशोधनवादी शक्तियों की दीर्घकालिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का फिर से उदय होना है। रक्षा विभाग ने कहा, यह स्पष्ट है कि चीन और रूस एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं जो उनके अधिनायकवादी मॉडल से मेल खाती हो और अन्य देशों के आर्थिक, कूटनीतिक और सुरक्षा फैसलों पर उन्हें वीटो का अधिकार मिल जाए।
• दूसरी तरफ नौवहन अधिकारों की स्वतंत्रता पर जोर देने के लिए एक ब्रिटिश युद्धपोत आस्ट्रेलिया से विवादित दक्षिण चीन सागर होकर गुजरेगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। इस कदम से चीन के नाराज होने की उम्मीद है।
• चीन संसाधनों से परिपूर्ण इस समूचे जलक्षेत्र पर अपना दावा करता है और चट्टानों तथा टापुओं को द्वीप में बदलकर वहां हवाईपट्टी और दूसरी सुविधाएं जुटा रहा है। ब्रिटिश रक्षामंत्री गेविन विलियमसन ने कहा कि पनडुब्बी रोधी प्रिगेट एचएमएस सदरलैंड इस हफ्ते ऑस्ट्रेलिया पहुंचेगा।
• सिडनी और केनबरा के दो दिवसीय दौरे के बाद द ऑस्ट्रेलियन अखबार ने विलियमसन के हवाले से कहा, दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरेंगे (वतन वापसी के दौरान) और इसके माध्यम से इस बात पर जोर देंगे कि हमारी नौसेना के पास ऐसा करने का अधिकार है।
• युद्धपोत 12 नॉटिकल मील के विवादित क्षेत्र या चीन द्वारा बनाए गए कृत्रिम द्वीप के पास से होकर गुजरेगा या नहीं उन्होंने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी। अमेरिकी जहाज पूर्व में ऐसा कर चुके हैं। उन्होंने हालांकि कहा, हम इस संदर्भ में अमेरिकी रूख का पूरी तरह समर्थन करते हैं, अमेरिका जो कर रहा है हम उसका समर्थन करते रहे हैं।

*🔷⭕️3. द. अफ्रीका : राष्ट्रपति जैकब जुमा को हटाने का फैसला*

• दक्षिण अफ्रीका की सत्तारूढ़ एएनएसी पार्टी ने राष्ट्रपति जैकब जुमा के इस्तीफा देने से इनकार करने के बाद उनसे औपचारिक रूप से पद छोड़ने का आग्रह किया है। पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों की मंगलवार तड़के हुई कई वार्ताओं के बाद यह फैसला लिया गया।
• बीबीसी के मुताबिक, यदि जुमा (75) अभी भी टस से मस नहीं हुए तो उन्हें संसद में विासमत का सामना करना पड़ेगा, जो वह हार सकते हैं। जुमा साल 2009 से राष्ट्रपति पद पर हैं और उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं, जिनसे उन्होंने इनकार किया है। हालांकि, एएनसी ने आधिकारिक रूप से अपनी योजनाओं की पुष्टि नहीं की है।
• जुमा पर दिसम्बर 2017 में उस समय से पद छोड़ने का दबाव बढ़ा है, जब एएनसी पार्टी के ही नेता सिरिल रामफोसा को उनके स्थान पर पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि जुमा इस औपचारिक आग्रह पर किस तरह से प्रतिक्रिया देंगे।

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*🔷4. ‘आयुष्मान भारत’ में आयुर्वेद का होगा दखल*

• केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘आयुष्मान भारत’ में आयुर्वेद की अहम भूमिका होगी। देश में खुलने वाले 1.5 करोड़ आरोग्य केंद्रों में आयुर्वेदिक दवाएं भी उपलब्ध होंगी। सामुदायिकचिकित्सा केंद्रों और जिला अस्पतालों में आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज का पायलट प्रोजेक्ट अलग से चल रहा है।

• आयुष मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार आरोग्य केंद्रों में आयुर्वेद के साथ-साथ यूनानी, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा और योग को भी जगह मिलेगी।1ध्यान देने की बात है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में आयुष्मान भारत के तहत 1.5 करोड़ आरोग्य केंद्र खोलने की घोषणा की थी ताकि आम लोगों को पड़ोस में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। इन केंद्रों में सामान्य बीमारियों की मुफ्त दवाएं भी उपलब्ध होंगी।
• वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आरोग्य केंद्रों में आम आदमी को निरोग बनाने के लिए देसी चिकित्सा पद्धति अपनाने पर जोर दिया जाएगा। इन केंद्रों में योग के प्रशिक्षण के साथ-साथ यूनानी, आयुर्वेद और सिद्ध से जुड़ी दवाएं भी मौजूद होंगी। दरअसल, देश में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसी बीमारियों पर नियंत्रण और इलाज में योग और आयुर्वेद काफी हद तक सफल रहा है।
• काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्टियल रिसर्च (सीएसआइआर) ने डायबिटीज के इलाज के लिए बीजीआर-34 नामक आयुर्वेदिक दवा विकसित की थी। एमिल फार्मास्यूटिकल्स द्वारा बाजार में बेची जा रही यह दवा दो साल के भीतर डायबिटीज के इलाज में 20 बड़े ब्रांड में शामिल हो गई है।
• यही वजह है कि जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के इलाज में आयुर्वेद को चिकित्सा प्रणाली में औपचारिक रूप से शामिल करने का काम शुरू हो चुका है।

*🔷⭕️5. सेना की बढ़ेगी ताकत : 13282 करोड़ की लागत से खरीदी जाएंगी 7.50 लाख अत्याधुनिक रायफलें*

• सरकार ने तीनों सेनाओं को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने के लिए 13, 282 करोड़ रुपये की लागत से लगभग सात लाख 50 हजार अत्याधुनिक रायफलें खरीदने को मंजूरी दी है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन की अध्यक्षता में आज यहां हुई रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की बैठक में लगभग 15 हजार 935 करोड़ रुपये के सौदों को मंजूरी दी गयी।
• इन सौदों में 12 हजार 280 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से तीनों सेनाओं के लिए सात लाख 40 हजार अत्याधुनिक असाल्ट रायफलें, सेना और वायु सेना के लिए 982 करोड़ रुपये की 5 हजार 719 स्नाइपर रायफलें, 1819 करोड़ रुपये
से तीनों सेनाओं के लिए हल्की मशीन गन और 850 करोड़ रुपये की लागत से नौसेना के लिए अत्याधुनिक तॉरपीडो पण्राली खरीदी जाएगी।
• डीएसी ने पिछली बैठक में भी सेना के अग्रिम मोर्चे पर तैनात जवानों के लिए रायफलों, कारबाइन और हल्की मशीन गन की खरीद को मंजूरी दी थी। रक्षा सूत्रों के अनुसार असाल्ट रायफलों से तीनों सेनाओं के जवानों को लैस किया जायेगा और ये रायफलें ‘‘बॉय एंड मेक इंडियन’श्रेणी के तहत आयुद्ध फैक्ट्रियों तथा निजी क्षेत्र से खरीदी जायेंगी।
• सरकार ने तीनों सेनाओं के लिए असाल्ट रायफलों के साथ – साथ फास्ट ट्रैक प्रक्रिया से जरूर के अनुसार अत्याधुनिक हल्की मशीन गन खरीदने की भी मंजूरी दी है। ये मशीन गन खास तौर पर सीमाओं पर तैनात सैनिकों को दी जायेंगी। नौसेना के युद्धपोतों की पनडुब्बी रोधी क्षमता बढ़ाने के लिए एडवांस तॉरपीडो डिकॉय सिस्टम ‘‘ मारीछ’ की खरीद को मंजूरी दी गयी है। मारीछ पण्राली रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने देश में ही विकसित की है।
• इस पण्राली का गहन परीक्षण और जांच की गयी है जो पूरी तरह सफल रही है। यह पण्राली भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा बनायी जायेगी। आतंकवादियों द्वारा सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाये जाने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सरकार के इस निर्णय को सैन्यकर्मियों को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने की दिशा में बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है जिससे कि सैन्यकर्मी इन हमलों को विफल कर सकें तथा इनका मुंहतोड़ जवाब दे सकें।

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*🌐🔷6. पड़ोसी देशों को बेची जाएगी अधिशेष बिजली*

• बिजली मंत्री आरके सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत अपनी अतिरिक्त बिजली के लिए श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे विदेशी बाजारों में संभावना तलाशेगा।देश में बिजलीघरों की स्थापित क्षमता की तुलना में उत्पादन (पीएलएफ) करीब 60 फीसद है। ऐसे में उनकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
• सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली कंपनी एनटीपीसी द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुएंिसंह ने कहा, ‘‘हम अपने बिजलीघरों को 80 फीसद प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) पर चला सकते हैं लेकिन कोयले की आपूत्तर्ि को लेकर दिक्कतें हैं। जब देश में जमीन के अंदर पर्याप्त कोयला भंडार है, ऐसे में कोयाला आयात करने का कोई मतलब नहीं है।
• हमें कोयले के परिवहन के लिए और रेलवे लाइन के विनिर्माण की जरूरत है।’उन्होंने कहा, ‘‘हमें श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे बाजारों में संभावना तलाशने की जरूरत है। वहां मांग है।
• हमें वहां पहुंचने की जरूरत है। उनके पास बिजली की कमी है।’ंिसंह का मानना है कि न केवल विदेशी बाजारों में संभावना तलाश कर मांग बढ़ाने की जरूरत है बल्कि देश में भी विद्युत की मांग बढ़ाने की आवश्यकता है।

*🌐7. दुनिया की सर्वश्रेष्ठ नैतिक फर्मो में विप्रो व टाटा स्टील*

• निजी क्षेत्र की अग्रणी स्टील निर्माता कंपनी टाटा स्टील लिमिटेड को छठी बार दुनिया में सर्वोच्च कारोबारी नैतिकता का पालन करने वाली कंपनी के खिताब से नवाजा गया है। अमेरिकी थिंक टैंक एथिस्फेयर इंस्टीट्यूट के मुताबिक दुनियाभर की 135 सर्वोच्च कारोबारी नैतिकता का पालन करने वाली कंपनियों में भारत की एकमात्र दूसरी कंपनी विप्रो लिमिटेड है, जो आइटी सेवा मुहैया कराती है।
• थिंक टैंक की सूची में शामिल वर्ष 2018 की विजेता कंपनियों को न्यूयॉर्क में 13 मार्च को एक आयोजन के दौरान सम्मानित किया जाएगा, जिसमें पेप्सीको की प्रबंध निदेशक इंद्रा नूयी का मुख्य भाषण संभावित है।1सूची में माइक्रोसॉफ्ट, डेल, सेल्सफोर्स व एडोब जैसी आइटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों के नाम हैं।
• अपने बयान में एथिस्फेयर ने कहा कि इन कंपनियों को 23 देशों के 57 उद्योगों में से छांटा गया है। बयान के मुताबिक ‘ये सभी कंपनियां कारोबार में नैतिकता को परिभाषित करने और उसका स्तर बढ़ाने में अग्रणी भूमिका अदा करने के लिए समर्पित हैं।’
• एथिस्फेयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) टिमोथी अरब्लिक ने कहा कि ‘पिछले 12 वर्षो में हमने लगातार यह देखा है कि जो कंपनियां पारदर्शिता और प्रामाणिकता पर ध्यान केंद्रित करती रही हैं, वे ही अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और निवेशकों का भरोसा जीतने में कामयाब रही हैं। नकारात्मक खबरों से थोड़ी देर के लिए लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है, लेकिन कानून का पालन और दुनियाभर में कारोबारी शुचिता पर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली कंपनियों को ही लंबी अवधि में सफलता हासिल होती है।’
• कारोबारी नैतिकता का पालन करने वाली अग्रणी कंपनियों में शामिल डेल टेक्नोलॉजीज के सीईओ माइकल डेल ने कहा कि लगातार पांचवीं बार कारोबारी नैतिकता के मामले में दुनिया की अग्रणी कंपनियों में शामिल होना गर्व का विषय है। माइक्रोसॉफ्ट के प्रेसीडेंट ब्रैड स्मिथ ने भी कहा कि भरोसा और अखंडता हमारी कारोबारी सफलता के प्रमुख पहलू हैं।

 

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*🔷8. दक्षेस देशों के युवा कृषि वैज्ञानकों के लिए पीएचडी छात्रवृत्ति*

• दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) ने दक्षिण एशियाई देशों के युवा कृषि वैज्ञानिकों के लिए दक्षेस कृषि पीएचडी छात्रवृत्ति 2018 के तहत आवेदन आमंत्रित किया है।विदेश मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, क्षेत्र में युवा वैज्ञानिकों के क्षमता उन्नयन के सतत प्रयास के तहत दक्षेस कृषि केंद्र (एसएसी) ने दक्षेस कृषि पीएचडी छात्रवृत्ति कार्यक्रम शुरू किया है।
• इस योजना का मकसद युवा कृषि वैज्ञानिकों को तैयार करना एवं उन्हें प्रतिष्ठित कृषि विविद्यालय से कृषि क्षेत्र में पीएचडी डिग्री प्रोग्राम करने का मार्ग प्रशस्त करना है।
• दक्षेस कृषि पीएचडी छात्रवृत्ति 2018 के तहत पात्र उम्मीदवार 15 अप्रैल 2018 तक आवेदन कर सकते हैं। आवेदकों को कृषि अर्थशास्त्र एवं अनुषंगी विज्ञान में स्नातकोत्तर या समकक्ष डिग्री धारक होना चाहिए।
• इसके तहत श्रीलंका स्थित पेरादेनिया विविद्यालय में स्नातकोत्तर कृषि संस्थान में कृषि अर्थशास्त्र में पीएचडी स्तर की पात्रता हासिल करने के लिये वित्तीय सहयोग प्रदान किया जाएगा।

*🔷9. देश के वनों ने दो साल में सोखा 3.8 करोड़ टन कार्बन*

• देश के वनों ने दो साल की अवधि में वातावरण से 38 मिलियन टन (3.8 करोड़ टन) कार्बन सोखकर खुद में समेट लिया है। वर्ष 2015 से 2017 की अवधि में वनों की कार्बन समेटने की दर 19 मिलियन टन प्रति वर्ष रही। अब देश के वनों की कुल कार्बन को स्टॉक करने की क्षमता 7044 से बढ़कर 7082 मिलियन टन हो गई है। वनों के कार्बन स्टॉक की यह क्षमता भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग (एफएसआइ) की सोमवार को जारी हुई ताजा रिपोर्ट में उजागर हुई है।
• एफएसआइ की रिपोर्ट के अनुसार दो सालों में सबसे अधिक कार्बन स्टॉक धरती के ऊपर पेड़-पौधों में मौजूद है और इसके बढ़ने की दर 09 मिलियन टन प्रति वर्ष रही। इसके बाद सबसे अधिक कार्बन जमीन के भीतर मिट्टी में दफन है। धरती के भीतर करीब 30 मीटर की गहराई में किए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई कि यहां कार्बन स्टॉक बढ़ने की दर सालाना 05 मिलियन टन रही।
• इसके अलावा जंगल में पेड़ों की जड़ों समेत सूखकर गिर चुके पेड़ों, लकड़ियों, जमीन पर पड़ी घासफूस आदि के रूप में दो साल में 10 मिलियन टन कार्बन का स्टॉक हुआ। इससे पता चलता है कि वनों में पेड़-पौधों से लेकर जमीन में गिरे पेड़ों, लकड़ियों के साथ ही जमीन के भीतर भी न सिर्फ कार्बन जमा है, बल्कि वनों के संवर्धन के साथ उनकी कार्बन स्टॉक क्षमता भी बढ़ रही है।
• प्रति हेक्टेयर स्टॉक में अंडमान आगे : एफएसआइ की रिपोर्ट में प्रति हेक्टेयर कार्बन स्टॉक का आकलन भी किया गया है। इसमें केंद्र शासित राज्य अंडमान निकोबार पहले स्थान पर है, जबकि कुल कार्बन स्टॉक में अव्वल स्थान पर आए अरुणाचल प्रदेश प्रति हेक्टेयर स्टॉक में दूसरे नंबर पर है।
• खास बात यह कि प्रति हेक्टेयर स्टॉक में भी उत्तराखंड का स्थान सातवां है, हालांकि कुल स्टॉक में उत्तराखंड से एक पायदान पीछे जम्मू एंड कश्मीर प्रति हेक्टेयर स्टॉक में एक पायदान आगे है। वहीं, कुल स्टॉक की सूची में टॉप टेन से बाहर हिमाचल प्रदेश का स्थान प्रति हेक्टेयर कार्बन स्टॉक में उत्तराखंड के बाद आठवां है।
• टॉप टेन की सूची से बाहर सिक्किम ने भी यहां अपनी जगह बनाने में सफलता हासिल की है और सिक्किम को टॉप थ्री में जगह मिली है।

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