अमेरिका-तुर्की के टकराव से एशिया में बढ़ेगी अस्थिरता
(कार्लोट कल और जैक इविन्ग )
© The New York Times
(दैनिक भास्कर से विशेष अनुबंध के तहत )
तुर्की के एक तरफ पूरा यूरोप तो दूसरी तरफ एशिया है। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण तुर्की की मुद्रा लीरा में लगातार गिरावट आ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में जो ट्वीट किया, उसके बाद तुर्की की अर्थव्यवस्था पर संकट गहराने लगा है। ट्रम्प ने ट्वीट में कहा कि वे तुर्की से आने वाले एल्यूमीनियम और स्टील पर टैरिफ दुगुना कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों अमेरिका-तुर्की के संबंध अच्छे नहीं हैं। ट्रम्प के ट्वीट के बाद सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में अस्थिरता का खतरा मंडराने लगा है, खासतौर पर एशिया व मध्य-पूर्व में। उससे भी बड़ा खतरा नाटो गठबंधन के टूटने का है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार टैरिफ के कारण विवादों में हैं। वे कहते हैं कि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं, जबकि वे शायद यह भूल रहे हैं कि एक एक कर के वे अमेरिका के सहयोगियों से दूर होते जा रहे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका अलग-थलग पड़ने लगा है। अमेरिका और तुर्की के बीच संबंध बिगड़ने का महत्वपूर्ण कारण उस पादरी एंड्रयू ब्रुन्सन को समझा जा रहा है, उन्हें तुर्की सरकार ने 21 महीने से नजरबंद कर रखा है। तुर्की के सैनिकों ने उन्हें तब हिरासत में लिया, जब वहां राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन के तख्तापलट होने जैसी स्थिति बनी थी। उसके बाद अमेरिका ने तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए। एर्दोगन मानते हैं कि तख्तापलट के प्रयासों के पीछे अमेरिका का हाथ है। अमेरिकी पादरी ब्रुन्सन तुर्की में पिछले 23 वर्षों से रह रहे हैं।
रणनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि एर्दोगन अमेरिका के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। उसका जवाब अमेरिकी राष्ट्रपति टैरिफ दुगुना करके दिया है, जिसका सीधा असर तुर्की की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। एर्दोगन जून में फिर से राष्ट्रपति चुने गए हैं, इस बार उनके पास पहले से कई गुना ज्यादा अधिकार हैं। अर्थव्यवस्था पर उन्हीं का नियंत्रण है। तुर्की की सीमा ईरान, इराक और सीरिया से लगी है। आर्थिक हालात बिगड़े तो उसका असर समूचे मध्य-पूर्व, एशिया और यूरोप तक होगा। तुर्की में निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों को भय है कि एर्दोगन की गैरजिम्मेदाराना आर्थिक नीतियां और ट्रम्प से उनके विवाद के कारण स्थितियां बिगड़ सकती हैं। तुर्की की मुद्रा लीरा एक महीने पहले डॉलर के मुकाबले 4.7 थी, जो आज 6.4 पहुंच गई है। ऐसी स्थिति में ट्रम्प ने तुर्की से आने वाले स्टील पर 50 फीसदी और एल्यूमीनियम पर 20 फीसदी टैरिफ लागू कर दिया है। तुर्की के कुल स्टील निर्यात में 13 फीसदी अमेरिका जाता था।
तुर्की में निवेश करने वाले एशियन और यूरोपीयन बैंकों में संदेह का वातावरण गहरा गया है। दुनियाभर के शेयर बाजारों की उनकी शेयर कीमतों में गिरावट देखी गई। कुछ ऐसी ही स्थिति वर्ष 2010 में ग्रीस में उत्पन्न हुई थी, वह अब तक उससे उबर नहीं पाया है। शुक्रवार को तुर्की में जो कुछ हुआ, इससे पता चलता है कि मध्यम अर्थव्यवस्था वाले देश को मुश्किल आने पर विश्व स्तर पर वित्तीय अस्थिरता बढ़ने का खतरा किस तरह उत्पन्न होने लगता है।
एर्दोगन ने शुक्रवार को संबोधित करते हुए कहा- ‘विदेशी शक्तियां देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ने का षडयंत्र रच रही हैं लेकिन, वे अपने देश को उनका शिकार बनने नहीं देंगे। वे (अमेरिका) सोचते हैं कि आर्थिक संकट के कारण हम उनके आगे घुटने टेक देंगे जबकि ऐसा नहीं होगा, वे इस देश को कभी समझ नहीं सकते। वे इस देश के साथ धमकी देने और ब्लैकमेल करने वाली भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते’। एर्दोगन ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि जिनके पास सोना, डॉलर, यूरो हैं, वे राष्ट्रीय बैंक में जाकर बदले में देश की मुद्रा लीरा हासिल करें, जिससे लीरा को मजबूत किया जा सके। यह राष्ट्रीय संघर्ष की स्थिति है। विश्लेषकों ने एर्दोगन के इस बयान को बहुत अपमानजनक बताया।
एर्दोगन को सुनने के बाद यूरोपीय परिषद में विदेश विभाग में फेलो एस्ली एदिन्तसबस ने कहा, ट्रम्प ने पिछले महीने नाटो सम्मेलन के दौरान कोशिश की थी कि पादरी की रिहाई के लिए एर्दोगन के साथ समझौता हो सके। बदले में ट्रम्प 32 महीने से अमेरिकी जेल में बंद तुर्की मूल के बैंकर मेहमत कान अतिला को रिहा करने वाले थे। ट्रम्प ने इससे भी आगे बढ़कर इजरायल से तुर्की के नागरिक एब्रू ज़कान को रिहा करने के लिए कहा था, इजरायल ने तुरंत उसे रिहा कर भी दिया। एस्ली बताती हैं, अमेरिका चाहता था कि पादरी ब्रुन्सन को तुरंत रिहा कर दिया जाए, जबकि तुर्की मूल के बैंकर को रिहा करने की प्रक्रिया में दो से तीन सप्ताह का वक्त लगने की बात कही गई थी। इसी कारण तुर्की और अमेरिका की डील नहीं हो पाई।
पादरी ब्रुन्सन तुर्की के तटीय शहर इज़मीर स्थित घर पर नजरबंद हैं। तुर्की सरकार ने इस मसले पर बातचीत करने के लिए वाशिंगटन दल भेजा था, वहां अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि बातचीत अच्छी नहीं रही।