04 Jul दैनिक समसामयिकी
1.कृषि सहित चार क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाएंगे गुजरात-इस्रइल
• गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का कहना है कि उनकी सरकार द्वारा चिह्नित चार मुख्य क्षेत्रों-कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने, जल संकट सुलझाने, आंतरिक सुरक्षा मजबूत बनाने और नवोन्मेष को बढ़ावा देने में इस्रइल के साथ गहन सहयोग बहुत मददगार साबित होगा।
• यहूदी राष्ट्र की छह दिवसीय यात्रा पर आए रूपाणी का कहना है कि पहली विदेश यात्रा के लिए इस्रइल का चयन ‘‘संयोग’ नहीं है। उन्होंने कहा कि मैंने तय किया कि मेरी पहली विदेश यात्रा इस्रइल की होगी, क्योंकि मेरी सरकार द्वारा चिह्नित चार क्षेत्रों में यह देश बेहतर कर रहा है।’
• जल संकट पर रूपाणी ने कहा कि इससे निपटने के लिए त्रिस्तरीय समाधान उपलब्ध है, जिसमें इस्रइल का अनुभव मददगार साबित हो सकता है। उन्होंने कहा, यदि इस्रइल से तुलना करें तो हम बहुत बेहतर स्थिति में हैं। यहां के मुकाबले गुजरात में वर्षा का स्तर बहुत अधिक है। नर्मदा नदी के रूप में हमारे पास बड़ा जल संसाधन है। हमारे पास 1,600 किलोमीटर लंबा समुद्र तट भी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पानी के पुन:चकण्रके लिए इस्रइल तारीफ के काबिल है, वह अपशिष्ट जल का 100 प्रतिशत पुन: प्रयोग करता है। हम बमुश्किल दो प्रतिशत अपशिष्ट जल का पुन: प्रयोग कर पाते हैं।
• उन्होंने कहा कि इसके अलावा इस्रइल सफलतापूर्वक अलवणीकरण करता है। हम परियोजना स्थापित कर रहे हैं, जो प्रतिदिन 10 करोड़ लीटर पेय जल शोधित कर सकेगी। दाहेज इलाके में भी अलवणीकरण के लिए इसी क्षमता की परियोजना लगाई जा रही है। मुख्यमंत्री का कहना है कि त्रिस्तरीय प्रयासों के तहत सात-आठ बड़ी अलवणीकरण परियोजनाएं स्थापित करके प्राकृतिक जल संसाधनों के योजनाबद्ध उपयोग और जल के पुन: चकण्रतथा पुन: प्रयोग को बढ़ावा देने के क्षेत्र में ठोस प्रयास करके राज्य में जल संकट सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया जा सकता है।
• उन्होंने कहा कि जल प्रबंधन के क्षेत्र में यदि हमारी योजना सफल रहती है तो कम वर्षा होने की स्थिति में भी जल संकट से निपटने में हम सक्षम होंगे। रूपाणी और उनकी टीम ने कृषि, जल प्रबंधन और आंतरिक सुरक्षा संबंधी इस्रइल की लगभग सभी फर्मों का दौरा किया।
2. द्विपक्षीय समझौतों को ताजा करेंगे भारत व नेपाल
• नेपाल – भारत संबंधों पर विशिष्ट जन समूह (द एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप ऑन नेपाल – इंडिया रिलेशन्स) में वर्ष 1950 की महत्वपूर्ण शांति एवं मित्रता संधि समेत अतीत में भारत और नेपाल के बीच हुए सभी द्विपक्षीय समझौतों और संधियों को दोनों देशों की वर्तमान वास्तविकता के मुताबिक अद्यतन करने पर सहमति बनी है।
• काठमांडो में कल बैठक के समापन के बाद तैयार की गई संयुक्त रिपोर्ट में विशिष्ट जनसमूह (ईपीजी) के सदस्य इस सहमति पर पहुंचे हैं। ईपीजी का गठन जनवरी 2016 में किया गया था और इसका काम नेपाल – भारत मित्रता संधि 1950 समेत द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करना है। ईपीजी की ओर से जारी वक्तव्य के मुताबिक समूह जल्द ही भारत तथा नेपाल के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट सौंपेगा।
• माई रिपब्लिका ने ईपीजी नेपाल के समन्वयक भेख बहादुर थापा के हवाले से बताया, यह विभिन्न द्विपक्षीय मुद्दों की समीक्षा करने और उनका समाधान निकालने की दिशा में एक कदम है। हम सर्वसम्मति से एक संयुक्त रिपोर्ट बना पाए हैं।
• आगे के काम के लिए इसने एक ठोस जमीन तैयार की है। समूह में नेपाल और भारत के चार – चार सदस्य हैं। नेपाल की ओर से समूह में थापा, नीलाम्बर आचार्य, सूर्यनाथ उपाध्याय और रंजन भट्टराई हैं। भारत के सदस्यों में भगत सिंह कोश्यारी, महेंद्र पी लामा, जयंत प्रसाद और बीसी उप्रेती शामिल हैं।
3. एफडीआई वृद्धि पांच साल के निचले स्तर पर
• देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की वृद्धि दर पांच साल के निचले स्तर पर आ गई है। वर्ष 2017-18 में एफडीआई प्रवाह तीन प्रतिशत की दर से बढ़कर 44.85 अरब डालर रहा है।
• औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में एफडीआई प्रवाह मात्र तीन प्रतिशत बढ़कर 44.85 अरब डालर रहा है। जबकि 2016-17 में यह वृद्धि दर 8.67%, 2015-16 में 29%, 2014-15 में 27% और 2013-14 में 8% रही थी। हालांकि, 2012-13 में एफडीआई प्रवाह में 38% की गिरावट दर्ज की गई।
• विशेषज्ञों के अनुसार घरेलू निवेश को पुनर्जीवित करना और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए देश में कारोबार सुगमता को आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण है। डेलाइट इंडिया में भागीदार अनिल तलरेजा ने कहा कि उपभोक्ता और खुदरा क्षेत्र में एफडीआई निवेश की वृद्धि दर कमजोर रहने की मुख्य वजह एफडीआई नीति की जटिलता और अनिश्चितता है।
• व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन की रपट से भी यह बात जाहिर होती है कि 2017 में भारत में एफडीआई घटकर 40 अरब डालर रहा है जो 2016 में 44 अरब डालर था। जबकि विदेशी निवेश की निकासी दोगुने से ज्यादा बढ़कर 11 अरब डालर रही है।
• वर्ष 2017–18 में सिर्फ 3% की वृद्धि के साथ 44.85 अरब डालर रही
• वर्ष 2016-17 में करीब 8.67 फीसद रही थी एफडीआई की वृद्धि दर
• वर्ष 2015-16 में 29 फीसद और वर्ष 2014-15 में 27% थी वृद्धि दर
• वर्ष 2013-14 में आठ फीसद रही थी एफडीआई की वृद्धि दर
• एफडीआई नीति की जटिलता व अनिश्चितता से घटी है वृद्धि दर
4. डिजिटल इंडिया की गति बढ़ाने में मददगार होगा एसईएस-12
• हाल ही में अमेरिका के फ्लोरिडा से प्रक्षेपित एक उपग्रह डिजिटल इंडिया की गति को तेज करने और उड़ान के दौरान विमानों में मोबाइल तथा इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में मददगार साबित होगा।
• एसईएस वीडियो में ग्लोबल सेल्स के कार्यकारी वाइस-प्रेसिडेंट दीपक माथुर ने कहा कि हाल ही में प्रक्षेपित एसईएस -12 उपग्रह भारत में तेजी से बढ रहे डायरेट -टू -होम (डीटीएच) बाजार को बढाने में मदद करेगा। भारत में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में उपभोक्ता डीटीएच अपना रहे हैं।
• माथुर ने कहा कि यह उपग्रह डिजिटल इंडिया को बढावा देने, भारत को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने और देश में संपर्क साधनों को बेहतर बनाने में भारत की मदद करने में सक्षम होगा। उनका कहना है कि दक्षिण एशिया और भारत के ऊपर एसईएस -12 की उच्च क्षमता संभवत: डिजिटल इंडिया और वित्तीय समावेशन के कदमों में और तेजी लाने में भारत की मदद कर सकेगा।
• दुनिया के प्रमुख उपग्रह ऑपरेटरों में शामिल एसईएस के वरिष्ठ कार्यकारी ने बताया कि भारतीय हवाई क्षेत्र में मोबाइल और इटरनेट सेवा मुहैया कराने के संबंध में ट्राई के हालिया फैसले के बाद उपग्रह अब विमान के भीतर संपर्क सेवा उपलब्ध करा सकता है।
• एसईएस -12 को जून के आरंभ में स्पेस एक्स फाल्कन 9 रॉकेट की मदद से अमेरिका के केप कनावरेल अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया था।
5. देश के ब्रह्मास्त्र अग्नि-5 के सहारे बढ़ेगी सेना की ताकत
• भारत देश की सबसे उन्नत और लंबी दूरी तक मार करने वाली अग्नि-5 मिसाइल को जल्द ही अपने हथियारों के जखीरे में शामिल करेगा। परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम पांच हजार किलोमीटर मारक क्षमता वाली इस अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल के निशाने पर पूरा चीन और आधा यूरोप होगा। सरकार के इस फैसले से सेना के मनोबल में खासा इजाफा होने की उम्मीद है।
• युद्ध का पासा पलटने में सक्षम अग्नि-5 मिसाइल इलीट स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड (एसएफसी) का हिस्सा होगी। इससे पहले अग्नि-5 के इस्तेमाल के कुछ और परीक्षण पूरे किए जाएंगे, जो कुछ हफ्तों का समय लेंगे। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अग्नि-5 के सेना में शामिल होने से भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई बढ़त हासिल होगी।
• यह मिसाइल चीन के प्रमुख शहर-बीजिंग, शंघाई, ग्वांग्झू और हांगकांग तक मार करने में सक्षम होगी। अग्नि-5 प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारी के अनुसार यह वास्तव में सामरिक संतुलन वाला हथियार है। इसके सेना में शामिल होने मात्र से भारत सामने वाले को सोचने के लिए मजबूर कर देगा। उन्होंने बताया कि अग्नि-5 दुनिया की सबसे उन्नत तकनीक पर आधारित बैलेस्टिक मिसाइल है। इसमें परमाणु हथियार को बेहतर तरीके से ले जाने की क्षमता है।
• प्रोजेक्ट से जुड़े सूत्रों के अनुसार अग्नि-5 मिसाइलों की पहली खेप जल्द एसएफसी को सौंप दी जाएगी, लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा बताने से उन्होंने इन्कार कर दिया।
• अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) अभी तक अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और उत्तर कोरिया के पास हैं। भारतीय सेना के पास अभी चार श्रेणी की अग्नि मिसाइलें हैं। इनकी मारक क्षमता 700 किलोमीटर से लेकर 3,500 किलोमीटर तक है।
• सफल रहे हैं सभी छह परीक्षण : अग्नि-5 मिसाइल के अभी तक छह परीक्षण हो चुके हैं। सभी परीक्षण सफल रहे हैं। पहला परीक्षण 19 अप्रैल, 2012 और दूसरा परीक्षण 15 सितंबर 2013 को हुआ था। तीसरा परीक्षण 31 जनवरी, 2015 और चौथा परीक्षण 26 दिसंबर 2016 को हुआ था। पांचवां परीक्षण इसी साल 18 जनवरी को और छठा परीक्षण तीन जून को हुआ।
6. हम्बनटोटा बंदरगाह पर रहेगा श्रीलंकाई नौसेना का नियंत्रण
• श्रीलंका अपने दक्षिणी नौसेना मुख्यालय को हम्बनटोटा बंदरगाह भेजेगा। इस बंदरगाह को उसने चीन को लीज पर दे रखा है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने गत दिवस बंदरगाह पर अपने नौसेना मुख्यालय को भेजने की जानकारी दी। चीन के नेताओं के साथ बातचीत में श्रीलंकाई प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि बंदरगाह के सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाएगी।
• पिछले वर्ष दिसंबर में श्रीलंका ने दक्षिणी बंदरगाह हम्बनटोटा चीन को 99 साल की लीज पर सौंप दिया था। क्षेत्र में बीजिंग के अपने प्रभाव का विस्तार करने की आशंका के बीच 1.12 अरब डॉलर (लगभग साढ़े सात हजार करोड़ रुपये) का यह करार हुआ था। श्रीलंका के विपक्षी नेताओं ने इस सौदे पर बंदरगाह बेचने का संदेह जताया था।
• चीन सरकार संचालित चाइना मार्चेट पोर्ट होल्डिंग्स ने पिछले सप्ताह कोलंबो को अंतिम किस्त का भुगतान कर दिया।
• भारत की चिंताओं के बीच विक्रमसिंघे ने की है घोषणा : हम्बनटोटा के संदर्भ में प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने भारत की चिंताओं का ख्याल रखा है। भारत ने आशंका जताई है कि हम्बनटोटा का चीन सैनिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल कर सकता है। श्रीलंकाई प्रधानमंत्री ने कहा है, ‘श्रीलंका की नौसेना अपने दक्षिणी कमान को हम्बनटोटा ले जा रही है। डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि बंदरगाह की सुरक्षा श्रीलंकाई नौसेना के हाथों में होगी।’
• केवल व्यापार के लिए चीन कर सकेगा इस्तेमाल : श्रीलंका सेना की दक्षिणी कमान अभी दक्षिणी बंदरगाह गाले में स्थित है। श्रीलंकाई प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि हम्बनटोटा का केवल व्यापारिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
• इससे आसपास के जिलों में आर्थिक विकास में तेजी आने की उम्मीद है। बंदरगाह संचालित करने के अलावा चीन श्रीलंका पोर्ट अथॉर्टी की साझीदारी में इंडस्टियल पार्क भी विकसित करेगा।
7. पानी से हाइड्रोजन ईंधन बनाएगा नया उत्प्रेरक
• वैज्ञानिकों ने एक ऐसे किफायती उत्प्रेरक को विकसित करने में सफलता हासिल की है, जिसकी मदद से पानी को तोड़कर हाइड्रोजन ईंधन बनाया जा सकेगा। पानी को इसके अवयवों हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ने के लिए अधिकतर प्रणालियों में दो उत्प्रेरकों की जरूरत होती है। एक उत्प्रेरक जो हाइड्रोजन को अलग करने के लिए क्रिया करता है और दूसरा उत्प्रेरक ऑक्सीजन का उत्पादन करता है।
• अब वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नए उत्प्रेरक की मदद से पानी को हाइड्रोजन में तोड़ने के लिए किसी अन्य उत्प्रेरक की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके चलते हाइड्रोजन ईंधन के निर्माण में कम लागत आएगी।1इस तरह किफायती होगा उत्प्रेरक : नया उत्प्रेरक लौह और डिनिकल फास्फाइड से बना है, जो व्यावसायिक रूप से उपलब्ध निकेल फोम पर दोनों कार्य करने में सक्षम है।
• अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन (यूएच) और कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसमें पानी से हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्र को कम करने की क्षमता होती है। कम ऊर्जा की जरूरत का मतलब यह हुआ कि हाइड्रोजन उत्पादन कम लागत पर किया जा सकेगा।
• नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में अध्ययन के प्रमुख लेखक रेन ने कहा कि चूंकि इसे कंप्रेशड किया जा सकता है या तरल रूप में बदला जा सकता है इसलिए ऊर्जा के कुछ अन्य स्वरूपों की तुलना में इसका अधिक आसानी से भंडारण किया जा सकता है। हालांकि बड़ी मात्र में गैस उत्पादन के लिए प्रायोगिक, किफायती और पर्यावरण अनुकूल तरीका खोजना खासकर पानी को इसके अवयवों में तोड़कर एक चुनौती रहा है।
• यह है खासियत : भले ही वर्तमान में मौजूद उत्प्रेरकों की मदद से पानी को हाइड्रोजन में तोड़ा जा रहा हो, लेकिन उनमें लागत अधिक आती है। इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन में सहायक प्रोफेसर शुओ चेन कहती हैं, ‘अभी जिन उत्प्रेरकों का प्रयोग किया जा रहा है वो प्लैटिनम समूह के तत्व से बने हैं, जो बहुत ही महंगे होते हैं। उनसे कम मात्र में पानी को तोड़ना तो ठीक है, लेकिन बड़े स्तर पर यह बहुत महंगा पड़ता है।
• वहीं, हमारे द्वारा विकसित उत्प्रेरक जिनसे बना है वो धरती पर प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं। इसलिए इस उत्प्रेरक से व्यापक स्तर पर पानी को हाइड्रोजन में तोड़ने पर कम लागत आती है।’
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