देश में बढ़ती साफ-सफाई, खुले में शौच मुक्ति और शौचालय निर्माण के कारण न केवल उत्पादकता बढ़ रही है बल्कि परिवारों की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है।
परमेश्वरन अय्यर , (लेखक पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय भारत सरकार में सचिव हैं। लेख में प्रस्तुत विचार निजी हैं।)

झारखंड का लातेहार जिला अब खुले में शौच मुक्त हो चुका है। वहां के स्कूली शिक्षकों को कुछ रोचक चीजें देखने को मिल रही हैं। उनका कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान के चलते बच्चों में डायरिया, उल्टी और मलेरिया की शिकायतें कम हुई हैं। स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की तादाद भी कम हुई है और उपस्थिति बेहतर हुई है। उनका मानना है कि बच्चे नियमित स्कूल आने के कारण पढ़ाई में भी बेहतर हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के चिकित्सकों का कहना है कि वहां पेट की बीमारियों की शिकायत लेकर आने वाली महिलाओं की तादाद में कमी आई है। महिलाओं को अब अपने इलाज पर बहुत कम व्यय करना पड़ रहा है और उनके पास उत्पादक कार्य करने के लिए समय भी अधिक है। इसके चलते वे अतिरिक्त कमाई कर पा रही हैं। इतना ही नहीं वे अपने बच्चों की स्कूली गतिविधियों में भी बेहतर योगदान कर पा रही हैं।
बिहार के किशनगंज जिले में स्थित हलमाला ग्राम पंचायत के शिब्बुलाल दास और राजो देवी का कहना है कि वे अपने वार्ड के पुराने खुले में शौच वाले स्थान के करीब रहा करते थे। तब उनका औसत मासिक पारिवरिक चिकित्सा बिल करीब 3,500 रुपये आया करता था। इसमें दवाई और चिकित्सक का शुल्क आदि सभी शामिल हैं। बीते करीब चार महीने से पंचायत खुले में शौच मुक्त है और उनका दावा है कि वे चार महीने में केवल दो बार चिकित्सक के पास गए हैं। जबकि पहले उन्हें एक महीने में चार से पांच बार चिकित्सक के पास जाना पड़ता था। क्या ये सारी बातें और ये सारे लाभ प्रमाणों पर आधारित हैं?
इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए और खुले में शौच मुक्त गांवों के परिवारों को मिलने वाले आर्थिक लाभ का आकलन करने के लिए यूनिसेफ ने हाल ही में करीब 12 राज्यों के 18,000 लोगों पर एक अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि ये लाभ न केवल उल्लेखनीय हैं बल्कि वे स्पष्टï नजर भी आ रहे हैं। अध्ययन में अनुमान जताया गया कि एक खुले में शौच मुक्त परिवार हर साल चिकित्सा के खर्च में करीब 50,000 रुपये की बचत करता है। इसके अलावा उसका समय भी बचता है और लोगों की जान भी। इसके अलावा उन्होंने अनुमान लगाया कि प्रति परिवार संपत्ति मूल्य में करीब 19,000 रुपये का इजाफा हुआ। अध्ययन में यह भी कहा गया कि सफाई के कारण हर परिवार को होने वाला आर्थिक लाभ 10 वर्ष की अवधि में होने वाले समेकित निवेश से 4.3 गुना अधिक रहेगा।
इन निष्कर्षों को वैश्विक आलोक में भी देख सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक सफाई पर होने वाले व्यय पर वैश्विक आर्थिक प्रतिफल प्रति डॉलर निवेश पर करीब 5.5 डॉलर है। जबकि अन्य अनुमानों के मुताबिक यह और अधिक हो सकता है। यूएन वाटर के अनुमान के मुताबिक साफ-सफाई में बेहतरी से हर घर को साल में काम करने, अध्ययन करने, बच्चों की देखभाल करने आदि के 1,000 अतिरिक्त घंटे मिलते हैं। यानी हर परिवार को हर साल आठ घंटे के काम के 125 दिन अतिरिक्त मिलते हैं। भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो खुले में शौच मुक्त भारत को हर साल काम के 10 अरब अतिरिक्त दिन मिल सकते हैं।
इन अध्ययनों की ही पुष्टिï करते हुए विश्व बैंक अनुमान जताता है कि अपर्याप्त सफाई के कारण हर साल करीब 260 अरब डॉलर का नुकसान होता है। इससे विभिन्न देशों को जीडीपी के 0.5 फीसदी से लेकर 7.2 फीसदी तक का नुकसान होता है। वर्ष 2006 में भारत को स्वास्थ्य, पानी, अन्य सेवाओं में कमी आदि के चलते 53.8 अरब रुपये का नुकसान हुआ था। यह देश के कुल जीडीपी का 6.4 फीसदी था।
देश का आर्थिक भविष्य काफी हद तक हमारी युवा आबादी और जननांकीय लाभांश पर निर्भर करता है। देश के पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में करीब 38 फीसदी शारीरिक और संज्ञानात्मक रूप से कमतर हैं। ऐसे में साफ-सफाई की कमी एक अहम मुद्दा है। इस बात का जोखिम है कि भविष्य में शायद हमारी काम करने वाली आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी पूरी उत्पादकता का इस्तेमाल न कर पाए। इससे अर्थव्यवस्था को गंभीर जोखिम उत्पन्न होगा। स्वच्छ भारत अभियान के चलते बदलाव आ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों की साफसफाई का स्तर बदला है और यह अक्टूबर 2014 के 39 फीसदी से सुधकर आज 84 फीसदी पर पहुंच चुका है। 360,000 से अधिक गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा चुका है।
देश में सफाई उद्योग करीब 32 अरब डॉलर का है। सन 2021 तक यह बढ़कर 62 अरब डॉलर हो जाएगा। इस दौरान इस क्षेत्र में रोजगार के कई प्रत्यक्ष अवसर भी सामने आ रहे हैं। झारखंड के सिमडेगा जिले में महिलाएं मिस्त्री का काम कर रही हैं और उन्हें राज मिस्त्री के तर्ज पर रानी मिस्त्री का नाम दिया गया है। झारखंड में अब करीब 50,000 ऐसी महिलाएं काम कर रही हैं जो रोज 300-400 रुपये कमा रही हैं। वहीं हर शौचालय के निर्माण से उन्हें 1,800 से 2,400 रुपये की अतिरिक्त आय होती है। बीते साढ़े तीन साल में देश भर में करीब 7 करोड़ शौचालय बने हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे करीब 1.68 अरब काम के घंटों की बचत हुई है।
हाल ही में महाराष्ट्र के खेड़ जिले के कृषि वैज्ञानिकों ने पाया कि शौच से बनी खाद ने प्याज की बेहतर उपज देने में मदद की। यह उपज जैविक खाद और रासायनिक खाद दोनों से बेहतर रही। सरकार स्वच्छ भारत मिशन के तहत दो पिट वाले शौचालयों को प्रोत्साहित किया जो स्वत: खाद तैयार करने में मदद करते हैं। इससे एक नए उद्योग की संभावना मजबूत हुई है। महाराष्ट्र के अधिकारियों का अनुमान है कि हर साल इस तरह करीब 1,400 टन खाद तैयार की जा सकती है। दुनिया भर में यह बात स्वीकार्य है कि अच्छी साफ-सफाई का सामुदायिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव होता है। अब साफ है कि इसका अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर हो रहा है। स्वच्छ भारत मिशन के जरिये सफाई अब राष्ट्रीय विकास के एजेंडे में प्रमुख हो गई है। इसके स्वास्थ्य संबंधी लाभ तो हैं ही, स्थिर आर्थिक बचत भी हो रही है। आज शौचालय न केवल चिकित्सक बल्कि बैंक, उर्वरक, रोजगार प्रदाता और विकास एवं निवेश के प्रतीक बनते जा रहे हैं।