उल्लेखनीय है कि पिछले 70 वर्षों में भारत ने कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। मोदी सरकार को इस वर्ष सत्ता में आये तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस वर्ष जुलाई में आर्थिक सुधारों को लागू हुए भी 26 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त, इसी वर्ष देश का 70वाँ स्वतंत्रता दिवस भी मनाया गया है। वर्ष 1947 में कई लोग ऐसे थे जो इस बात पर संदेह व्यक्त करते थे कि यह नया राष्ट्र विकास की दौड़ में आगे निकल भी पाएगा अथवा नहीं। परन्तु आज हम देखते हैं कि हमारा लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा व मजबूत लोकतंत्र है। हालाँकि यह अराजकता से ग्रस्त भी है। आज आवश्यकता है कि पिछले 70 वर्षों में भारत द्वारा हासिल की गई सफलताओं और असफलताओं का एक विश्लेषण किया जाए ताकि भविष्य में शेष अधूरे कार्यों को पूरा करने के नए मानदंड स्थापित किये जा सकें।

यदि आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर विश्लेषण किया जाए तो वर्तमान में औसत भारतीय 70 वर्ष पूर्व की तुलना में सात गुना अधिक संपन्न अथवा धनवान है। आज प्रति व्यक्ति वार्षिक आय वर्ष 1950-51 के 11,570 रुपये की तुलना में 82,269 रुपये है। यह गणना वर्ष 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर आधारित है। वास्तव में सात दशकों में हुए इस बदलाव की प्रवृत्ति एकसमान नहीं रही है। प्रथम चार दशकों के दौरान वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में दोगुनी वृद्धि हुई और यह वर्ष 1950-51 के 11,570 रुपये की तुलना में वर्ष 1990-91 में 24,634 हो गई। इसी प्रकार अगले 20 वर्षों में इसमें दोगुनी से अधिक वृद्धि दर्ज की गई तथा यह वर्ष 2010-11 में 60,476 रुपये हो गई। वर्ष 2015-16 के दौरान वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में एक-तिहाई वृद्धि दर्ज की गई थी।

इस त्वरित वृद्धि का कारण नीतियों में किये गए संरचनात्मक बदलाव थे क्योंकि इस दौरान तीव्र गति से विकसित होने वाले क्षेत्रों को धीमी गति से वृद्धि करने वाले क्षेत्रों की तुलना में अधिक महत्त्व दिया गया था। हालाँकि, पिछले तीन दशकों के दौरान पहले चार दशकों की तुलना में निरंतर वृद्धि देखी गई क्योंकि इस दौरान नीतिगत व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव किये गए थे। 1960 के मध्य में लाइसेंस परमिट नियंत्रण व्यवस्था को लागू किया गया तथा 1980 के दौरान भी कुछ सुधारों की शुरुआत की गई। परन्तु औद्योगिक नीति, व्यापार और विनियमन दर नीति, राजस्व सुधार और वित्तीय क्षेत्र में सुधारों की शुरुआत वर्ष 1991 में भुगतान संतुलन संकट के पश्चात ही की गई।

70 वर्षों के दौरान हुई जनसंख्या वृद्धि (359 करोड़ से 1 अरब 30 करोड़) के बावजूद देश की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में हुई वृद्धि यह दर्शाती है कि राष्ट्रीय आय में भी तीव्र वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय आय 5 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर वर्ष 2011-12 (वर्ष 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर) में 120 ट्रिलियन रुपये हो गई। यदि डॉलर के संदर्भ में देखा जाए तो आज भारत 2.3 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था है तथा विश्व में सातवें स्थान पर है। यह क्रय शक्ति समता (purchasing power parity) के मामले में चीन और अमेरिका के पश्चात तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत को अब विश्व की सबसे तीव्रता से बढ़ती अर्थव्यवस्था माना जाता है क्योंकि हाल ही के वर्षों में इसकी औसत विकास दर 7% के करीब रही है। यद्यपि कुछ विशेषज्ञ इस पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। हालाँकि, विभिन्न समयावधियों के दौरान भिन्न-भिन्न प्रकार के बदलाव देखे गए परन्तु भारत का समग्र विकास प्रदर्शन (overall growth performance) पिछले 70 वर्षों के दौरान आकर्षक रहा है।

देश में पिछले सात दशकों में स्वास्थ्य और शिक्षा मानकों में पर्याप्त वृद्धि दर्ज की गई है। यदि शिक्षा के संदर्भ में बात की जाए तो वर्ष 1951 में देश की मात्र 18% जनसंख्या ही शिक्षित थी जबकि अब यह आँकड़ा 74% हो गया है। प्रारंभिक शिक्षा हेतु सकल नामांकन दर वर्ष 1950-51 के 32.1% की तुलना में वर्तमान में 96.6% हो गई है। यदि स्वास्थ्य संबंधी आँकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो देश में वर्ष 1951 में नवजात मृत्यु दर 146 थी जोकि वर्तमान में 37 रह गई है। वर्ष 1997-98 के मातृत्व मृत्यु दर के आँकड़े यह संकेत देते हैं कि मातृत्व मृत्यु दर वर्ष 1997-98 के 398 की तुलना में वर्तमान में 167 रह गई है। देश की स्वास्थ्य स्थिति का अधिक व्यापक विश्लेषण जीवन प्रत्याशा से किया जाता है। वर्ष 1970 के दशक से उपलब्ध आँकड़े यह प्रदर्शित करते हैं कि जीवन प्रत्याशा वर्ष 1970-75 में 49.7 वर्ष थी जो वर्ष 2006-10 में 66.1 वर्ष हो गई।

हालाँकि स्वास्थ्य और शिक्षा के ये आंकड़े उल्लेखनीय हैं परन्तु यदि इसके दूसरे पहलू पर नजर डालें तो स्थिति विकराल नजर आती है। भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य में इस प्रकार की स्थिति और

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