भारत में निर्धनता और बेराज़गारी
निर्धनता
गरीबी रेखा या निर्धनता रेखा (poverty line) आय के उस स्तर को कहते हैं जिससे कम आमदनी होने पे इंसान अपनी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ होता है। गरीबी रेखा अलग अलग देशों में अलग अलग होती है। उदहारण के लिये अमरीका में निर्धनता रेखा भारत में मान्य निर्धनता रेखा से काफी ऊपर है।
विश्व बैंक के अनुसार निर्धनता रेखा –विश्व बैंक के अनुसार विकसित देशों के लिये निर्धनता रेखा 2 डालर प्रति व्यक्ति प्रति दिन है जबकि अल्पविकसित एवं विकासशील देशों के लिये 1.25 डालर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है.
योजना आयोग कार्यदल के अनुसार निर्धनता रेखा – योजना अयोग के कार्यदल ने पोषण के लिये प्रतिदिन की ऊर्जा आवश्यकता के आधार पर निर्धनता को परिभाषित किया था. उनके अनुसार शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रतिदिन भोजन में होना आवश्यक है. जिन परिवारों की आय इसके लिये पर्याप्त नहीं है वे निर्धन हैं.
लकड़ावाला समिति के अनुसार निर्धनता – वर्ष 1989 में योजना आयोग में डी.टी. लकड़ावाला की अध्यक्षता में पुन: एक कार्यदल का गठन किया गया. इस कार्यदल ने प्रत्येक राज्य के लिये अलग-अलग निर्धनता रेखा बनाई और इसके लिये शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाया.
1990 में पुन: कैलेरी को निर्धनता की गणना का आधार बनाया गया.
सुरेश तेंदुलकर समिति – इस समिति ने कैलोरी के स्थान पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को आधार बनाया. समिति ने शहरी क्षेत्र में 1000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह (33 रुपये प्रति दिन) और ग्रामीण क्षेत्र के लिये 816 रुपये प्रति माह (27 रुपये प्रति दिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीब बताया.
डा. सी. रंगराजन समिति – 2012 में योजना आयोग व्दारा गठित इस समिति ने शहरी क्षेत्र में 1407 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह (47 रुपये प्रति दिन) और ग्रामीण क्षेत्र के लिये 972 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह (32 रुपये प्रति दिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीब बताया. इस समिति के अनुसार 2011-12 में भारत में गरीबों की जनसंख्या 29.5 प्रतिशत थी. सबसे अधिक गरीबी वाले राज्य थे – छत्तीसगढ़ – 47.9 प्रतिशत, मणिपुर – 46.7 प्रतिशत और ओडिशा – 45.9 प्रतिशत.
सबसे कम गरीबों का अनुपात गोवा में हैं तथा गरीबों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश और उसके बाद बिहार में है.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ.) सामान्य याददाश्त अवधि (30 दिन) के भीतर सभी वस्तुओं पर खर्च तथा मिश्रित याददाश्त अवधि (365 दिन) में 5 अखाद्य वस्तुतओं – वस्त्र, जूते-चप्पल, टिकाऊ वस्तुएं, चिकित्सा और शिक्षा पर खर्च को गरीबी के सर्वेक्षण का आधार बनाया.
इसके अनुसार भारत में गरीबी के आंकड़े निम्नानुसार हैं –
सर्वेक्षण वर्ष | भारत | ग्रामीण | शहरी |
2004-2005 | 37.2% | 42% | 25.5% |
2009-2010 | 29.8% | 33.8% | 20.9% |
2011-2012 | 21.95 | 25.7% | 13.7% |
महत्वपूर्ण अवधारणाएं
गरीबी का दुष्चक्र – रेगनर नर्क्से ने कहा है गरीबी का मुख्य कारण पूंजी निर्माण का न होना है. गरीबी के कारण बचत कम हेाती है और पूंजीगत निवेश कम होता है. कम निवेश के कारण उत्पादकता कम रहती है जिससे गरीबी और बढ़ती है. इसे ही गरीबी का दुष्चक्र कहते हैं.
लोरेंज़ वक्र
यह किसी देश में असमानता को नापने का ग्राफ है. इसमें कुटुंबों का प्रतिशत एक्स अक्ष पर तथा आय में हिस्सेसदारी का प्रतिशत वाय अक्ष पर रखा जाता है.
गिनी गुणांक – गिनी गुणांक लारेंज़ वक्र पर आधारित हैं. समाज में आय एवं संपत्ति की असामनता का माप है. यदि गिनी गुणांक 0 है तो समाज में सभी व्यक्तियों की आय समान है. इसके विपरीत यदि गिनी गुणांक 1 है तो इसका तात्पर्य है कि सारी आय कुछ व्यक्तियों के पास केन्द्रित है.
निर्धनता अनुपात – जनसंख्या का वह भाग जो गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करता है
निर्धनता जाल (पावर्टी ट्रेप) जब सामाजिक सुरक्षा पेंशन, विधवा पेंशन, बेरोज़गारी भत्ता. आदि पाने वाला व्यक्ति रोज़गार की तलाश ही बंद कर देता है क्योंकि रोजगार से मिलने वाली मजदूरी सामाजिक सुरक्षा अनुदान से भी कम होती है.
फिलिप्स वक्र फिलिप्स वक्र का इस्तेमाल बेरोजगारी की दर व मुद्रास्फीति की दर के बीच संबंध बताने के लिए ब्रितानी अर्थशास्त्री ए.डब्ल्यू. फिलिप्स ने किया. फिलिप्स वक्र की परिभाषा के अनुसार बेरोजगारी की दर व मुद्रास्फीति की दर के बीच विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है. इस विपरीत सम्बन्ध का अभिप्राय एक उन्नतक्रम विधि से होता है, जिसमें बेरोजगारी कम करने के लिए मुद्रा स्फीति की अपेक्षाकृत अधिक दर के रूप में कीमत चुकानी पड़ती है तथा मुद्रास्फीति की दर को कम करने के लिए बेरोजगारी की अपेक्षाकृत ऊंची दर के रूप में कीमत अदा करनी होती है.
भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण – अशिक्षा, बेरोज़गारी, अधिक बीमारी, जनसंख्या का दबाव, कम विकास दर, मुद्रास्फिति की उच्च दर, अपर्याप्त पूंजी, कौशल का अभाव, उच्च प्रौद्योगिकी का अभाव, अधोसंरचानाओं का अभाव.
निर्धनता के प्रभाव – निरक्षरता, कुपोषण बीमारियां, बाल श्रम, बेरोज़गारी, सामाजिक चिंता, घर की समस्या -फुटपाथ, सड़क के किनारे, दूसरी खुली जगहें, एक कमरे में एक-साथ कई लोगों का रहना, लैंगिक असमानता, अपराधो का बढ़ना, सामाजिक एवं राजनीतिक घर्षण, आदि.
निर्धनता दूर करने के उपाय – शिक्षा का प्रसार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, जनसंख्या पर नियंत्रण के उपाय, रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना, महंगाई पर नियंत्रण रखना, कौशल का विकास, उच्च, प्रौद्योगिकी का उपयोग, कृषि क्षेत्र का विकास, गरीबों के लिये विशेष गरीबी उन्मू्लन कार्यक्रम, गरीबों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास, पिछड़ों पर विशेष ध्यान देना, आदि.
गरीबी पर विश्व बैंक की रिपोर्ट 2015 – रिपोर्ट का शीर्षक है अत्यधिक गरीबी का खात्मा, और समृध्दि में साझेदारी. गरीबी रेखा के पुराने पैमाने 1.25 डालर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आय को बदलकर 1.9 डालर (पी.पी.पी.) किया गया. विश्व में 9.6 प्रतिशत जनसंख्या (70.2 करोड़) गरीब है. भारत में 12.4 प्रतिशत लोग गरीब हैं जो दुनिया में सबसे अधिक हैं. सन् 2030 तक गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य है.
बेरोज़गारी
बेरोजगारी की समस्या विकसित और विकासशील दोनों देशों में पाई जाती है. प्रसिध्द अर्थशास्त्री कीन्स बेरोजगारी को किसी भी समस्या से बड़ी समस्या मानता था. इसी कारण वह कहता था कि यदि किसी देश के पास बेरोजगारों से करवाने के लिए कोई भी काम ना हो तो उनसे सिर्फ गड्डे खुदवाकर उन्हें भरवाना चाहिए ऐसा करवाने से बेरोजगार लोग भले ही कोई उत्पादक कार्य न करें लेकिन वे अनुत्पादक कार्यों में संलिप्त नही होंगे और देश में वस्तुओं और सेवाओं की मांग बनी रहेगी.
बेरोजगार किसे कहते हैं – बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.
विकासशील देशों में निम्न प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है–
- मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment): इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है. कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई, बोवाई, कटाई आदि कार्यों के समय तो रोजगार मिलता है लेकिन जैसे ही कृषि कार्य ख़त्म हो जाता है तो कृषि में लगे लोग बेरोजगार हो जाते हैं.
- प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment): प्रच्छन्न बेरोजगारी उस बेरोजगारी को कहते हैं जिसमे कुछ लोगों की उत्पादकता शून्य होती है अर्थात यदि इन लोगों को उस काम में से हटा भी लिया जाये तो भी उत्पादन में कोई अंतर नही आएगा. जैसे यदि किसी फैक्ट्री में 100 जूतों का निर्माण 10 लोग कर रहे हैं और यदि इसमें से 3 लोग बाहर निकाल दिए जाएँ तो भी 100 जूतों का निर्माण हो जाये तो इन हटाये गए 3 लोगों को प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार कहा जायेगा. भारत की कृषि में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है.
- संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment): संरचनात्मक बेरोजगारी तब प्रकट होती है जब बाजार में दीर्घकालिक स्थितियों में बदलाव आता है. उदाहरण के लिए: भारत में स्कूटर का उत्पादन बंद हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस नए विकास के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे मिस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की मांग बढ़ गयी है. इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन के कारण पैदा होती है.
विकसित देशों में इन दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है–
- चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment): इस प्रकार की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होती है. जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और जब अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आता है तो उत्पादन कम होता है और कम लोगों की जरुरत होती है जिसके कारण बेरोजगारी बढती है.
- प्रतिरोधात्मक या घर्षण जनित बेरोजगारी (Frictional Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो एक रोजगार को छोड़कर किसी दूसरे रोजगार में जाता है, तो दोनों रोजगारों के बीच की अवधि में वह बेरोजगार हो सकता है, या ऐसा हो सकता है कि नयी टेक्नोलॉजी के प्रयोग के कारण एक व्यक्ति एक रोजगार से निकलकर या निकाल दिए जाने के कारण रोजगार की तलाश कर रहा हो, तो पुरानी नौकरी छोड़ने और नया रोजगार पाने की अवधि की बेरोजगारी को घर्षणजनित बेरोजगारी कहते हैं.
बेरोजगारी के अन्य प्रकार इस प्रकार हैं–
- ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार नही है अर्थात वह ज्यादा मजदूरी की मांग कर रहा है जो कि उसको मिल नही रही है इस कारण वह बेरोजगार है.
- खुली या अनैच्छिक बेरोजगारी (Open or Involuntary Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है लेकिन फिर भी उसे काम नही मिल रहा है तो उसे अनैच्छिक बेरोजगार कहा जायेगा
- अल्प रोज़गार: इसमें ऐस श्रमिक आते हैं जिन्हे थोड़ा बहुत काम मिलता है परन्तु अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं मिलता.
- तकनीकी बेराज़गारी: आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के कारण निर्मित हुई बेरोज़गारी. जब उद्योग में आधुनिक तकनीक एवं प्राद्योगिक का उपयोग किया जाता है तो मानव श्रम की आवश्यता कम हो जाती है जिससे बेरोज़गारी उत्पन्न होती है.
- शिक्षित बेरोज़गारी: शिक्षा के अनुसार काम न मिलना. ऐसा देखा जा रहा है कि चपरासी की नौकरी के लिये एम.ए. पास लोग भी आवेदन कर रहे हैं.
बेरोज़गारी का मापन – भारत में बेरोज़गारी का मापन NSSO व्दारा किया जाता है. इसकी 3 विधियां हैं –
- समान्य स्थिति (U.S.) – इसमें वर्ष को 2 भागों में बांटा जाता है – व्यरस्त भाग एवं सुस्त भाग. यदि किसी व्यक्ति को व्यस्त भाग में भी काम न मिले तो उसे बेरोज़गार माना जाता है.
- प्रचलित साप्ताहिक स्थिति (C.W.S.) – किसी संदर्भित सप्ताह में यदि किसी को एक घंटे का काम भी न मिले को उसे बेरोज़गार माना जाता है.
- प्रचलित दैनिक स्थिति (C.D.S.) – यदि किसी व्यक्ति को एक दिन में चार घंटे का रोज़गार उपलब्ध हो तो उसे आधे दिन का और इससे अधिक रोज़गार उपलब्ध होने पर उसे पूरे दिन का रोज़गार माना जाता है. यह सबसे उपयुक्त विधि है.
वर्ष 2011-12 के दौरान श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 3.8% हैं. देश के विभिन्न राज्यों में गुजरात में बेरोजगारी दर सबसे कम 1% है, जबकि दिल्ली एवं महाराष्ट्र में 4.8% एवं 2.8% है. सार्वधिक बेरोज़गारी दर वाले राज्य केरल और पश्चिम बंगाल थे. इस सर्वे के अनुसार, देश की महिलाओं की अनुमानित बेरोज़गारी दर 7% थी.
बेरोज़गारी की दर – बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या को 100 से गुणा करके कुल श्रम शक्ति से भाग देने पर बेरोज़गारी की दर प्राप्त होती है.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी नवीनतम वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक रिपोर्ट में वर्ष 2017 तथा 2018 में भारत में बेरोजगारी दर में 3.5 प्रतिशत तक की वृद्धि का अनुमान लगाया है। पहले इसके 3.4% तक रहने का अनुमान लगाया गया था।
भारतीय संदर्भ
- बेरोज़गारों की संख्या 17.8 मिलियन की बजाय 18.3 मिलियन तक रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है.
- प्रतिशत के संदर्भ में ILO ने सभी तीन वर्षों 2017, 2018 और 2019 के लिये भारत में बेरोज़गारी दर 3.5% पर स्थिर रहने का अनुमान लगाया है.
- एशिया पैसिफिक क्षेत्र में 2017 से 2019 के दौरान 23 मिलियन नई नौकरियाँ सृजित होंगी और भारत सहित अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नए रोज़गार सृजित होंगे किंतु पूरे क्षेत्र में बेरोज़गारों की संख्या बढ़ेगी.
Poverty and Unemployment in India
Poverty
Poverty line – It is income at such low level that a person is not able to fulfil his physical needs. Poverty line is different in different countries. For example poverty line in USA is much higher than poverty line in India
Poverty line according to World Bank – World Bank has kept poverty line at ‘2 per capita per day for developed countries and ‘1.25 per capita per day for underdeveloped or developing countries.
Poverty line according to Planning Commission Task Force – Task force of the Planning Commission had defined poverty line on the basis of nutrition as money required to provide at least 2100 calories in urban areas and 2400 calories in rural areas.
Poverty according to Lakdawala Committee – In the year 1989 planning commission appointed another task force under D.T. Lakdawala. This task force made separate poverty lines for each state. The poverty line made by them was based on Consumer Price Index (CPI) for Industrial Labor in urban areas and on Consumer Price Index for Agricultural Labor in rural areas.
In the year 1990 once again calories were made the basis of poverty line.
Suresh Tendulkar Committee – This committee proposed per capita consumer expenditure instead of calories as the basis of calculating poverty. The committee kept Rs 1000 per capita per month (Rs 33 per day) in urban areas and Rs 816 per capita per month (Rs 27 per day) in rural areas.
Dr. C. Rangrajan Committee – This committee constituted by the planning commission in 2012 kept urban poverty line at consumption expenditure less than Rs 1407 per capita per month (Rs 47 per day) and rural poverty line at Rs 972 per capita per month (Rs 32 per day). According to this committee the number of poor in 2011-12 in India was 29.5%. The Sates with the larges proportion of poor people were – Chhattisgarh – 47.9%, Manipur- 46.7% and Odisha – 45.9%.
The proportion of poor was least in Goa. The largest absolute number of poor people is in Uttar Pradesh and after that in Bihar.
National Sample Survey Organisation (NSSO) used Uniform Reference Period (URP) of 30 days recall for expenditure on all goods and Mixed Reference Period (MRP) of 365 days for expenditure on 5 non food items including cloths, shoes, durables, health and education for survey of poverty–
According to this survey poverty in India was as follows –
Survey Year | India | Rural | Urban |
2004-2005 | 37.2% | 42% | 25.5% |
2009-2010 | 29.8% | 33.8% | 20.9% |
2011-2012 | 21.95 | 25.7% | 13.7% |
Important Concepts
Vicious circle of Poverty – Regner Nurksey has said that the main reason of poverty is lack of capital formation. There are low savings due to poverty which lead to low investment. Low investment causes low productivity which increases poverty. This is called vicious circle of poverty.
Lorenz Curve This is a graph to measure inequality in a country. Percentage of households is plotted on the X-axis and percentage of the share of income on the Y-axis.
Gini Coefficient – Gini Coefficient is based on Lorenz curve and is a measure of income and wealth inequality in a society. If the Gini coefficient is 0 then all the income of all persons in the society is equal. On the other hand if it is 1 then it means that all income is concentrated in a few hands.
Poverty Ration – The proportion of population below the poverty line is called poverty ratio.
Poverty trap – When the person who is getting social security money from the Government in schemes like widow pension, social security pension, unemployment allowance etc. stops searching for employment because the income which he may get from employment is less than what he gets in from social security he is said to have fallen in poverty trap.
Phillips Curve –The Phillips curve is an economic concept developed by A. W. Phillips showing that inflation and unemployment have a stable and inverse relationship. The theory states that with economic growth comes inflation, which in turn should lead to more jobs and less unemployment. However, the original concept has been somewhat disproven empirically due to the occurrence of stagflation in the 1970s, when there were high levels of both inflation and unemployment.
Main reasons of poverty in India – Lack of education, unemployment, ill-health, population pressure, low development levels, inflation, inadequate capital, lack of skills, non-availability of high technology, lack of infrastructure etc.
Effects of Poverty – Illiteracy, malnutrition, ill-health, child labour, social tensions, housing problem (people live on the footpath and on the roadside and other open spaces), gender discrimination, increase in crime rate, social and political friction, etc.
Methods of Poverty Reduction – Spread of education, better health case, population control, creation of employment opportunities, control on inflation, use of high technology, Development of agriculture sector, special poverty elimination programme, efforts to provide for minimum needs of the poor, special attention to the deprived classes, etc.
World Bank Report on Poverty 2015 – The title of the report is – “Ending Extreme Poverty and Sharing Prosperity”. The old scale of poverty measurement of ‘1.25 per capita per day was changed to ‘1.9 per capita per day (PPP). 9.6% of the world population (70.2 crores) is poor. In India 12.4% population is poor which is the highest in the world. The aim is poverty elimination by the year 2030.
Unemployment
The problem of unemployment is found both in developed and developing countries. John Maynard Keynes considered this to be the biggest problem of any country. He used to say that if a country does not have enough work fo the unemployed their labor should be used to dig and fill ditches. Bu doing to even if they are not engaged in productive work at least they will not be doing unproductive things and the demand for goods and services in the country will be maintained.
Definition of unemployment – A person who is willing to work at the prevailing market wage but is not able to get work is called unemployed person.
The definition of employment varies from country to country, e.g. in the USA if a person is not able to get a job according to his qualifications, he is considered unemployed.
The unemployment found in developing countries is of the following types –
- Seasonal Unemployment: Seasonal unemployment occurs when people are unemployed at particular times of the year when demand for labor is lower than usual. This kind of unemployment is found typically in agriculture sector during non-agriculture season.
- Disguised Unemployment (Disguised Unemployment): It exists where part of the labor force is either left without work or is working in a redundant manner where worker productivity is essentially zero. It is unemployment that does not affect aggregate output. For example if 10 persons make 100 shoes in a factory but is 3 are removed and still 100 shoes are made, then these 3 people so removed will be called disguised unemployed. In India this is a big problem in agriculture sector.
- Structural Unemployment: Structural unemployment refers to a mismatch between the jobs available and the skill levels of the unemployed. Unlike cyclical unemployment, it’s caused by forces other than the business cycle. It occurs when an underlying shift in the economy makes it difficult for some groups to find jobs. For example in India everyone has a mobile phone now so people who were engaged in the PCO business became unemployed.
The following two types of unemployment is found in developed countries –
- Cyclical Unemployment: Cyclical unemployment is a factor of overall unemployment that relates to the cyclical trends in growth and production that occur within the business cycle. When business cycles are at their peak, cyclical unemployment will be low because total economic output is being maximized.
- Frictional Unemployment: Frictional unemployment is when workers leave their jobs to find better ones. It’s usually a voluntary exit but can also result from a layoff or termination with cause. Friction is the time, effort, and expense it takes the worker to find a new job. Friction is unavoidable.
Other forms of unemployment are–
- Voluntary Unemployment: A voluntarily unemployed person is one who rejects a position while looking for one with better pay or benefits. Most frictional unemployment (unemployment when one is between jobs) is considered voluntary because one is looking for work rather than taking any job one finds.
- Open or Involuntary Unemployment: Involuntary unemployment occurs when a person is willing to work at the prevailing wage yet is unemployed.
- Low employment:In this people do not get work according to their ability and work for shorter durations.
- Technological unemployment: The term technological unemployment is used to describe the loss of jobs due to advances in automation and other technologies. Technological unemployment is a form of structural unemployment, which is a permanent shift in the availability of certain jobs.
- Educated unemployment: When people do not get jobs according to their education levels.
Measurement of Unemployment – Measurement of unemployment in India is done by NSSO. Three methods are used of this –
- Usual Principal Status (UPS) or Usual Status (PS) – The status of activity on which a person has spent relatively longer time of the preceding 365 days prior to the date of survey is considered to be the usual principal activity status of the person. If an individual was ‘working’ and/or was ‘seeking or available for work’ for major part of the year preceding the date of survey then h/she is considered as being part of the ‘Labor Force’ If he was seeking work for the most part of the preceding 365 days and was not working he will be considered unemployed.
- The Current Weekly Status (CWS) approach to measuring unemployment uses seven days preceding the date of survey as the reference period. A person is considered to be employed if he or she pursues any one or more of the gainful activities for at least one-hour on any day of the reference week. On the other hand, if a person does not pursue any gainful activity, but has been seeking or available for work, the person is considered as unemployed.
- The current daily status approach to measuring unemployment seeks to ascertain the activity status of an individual for each day of the reference week. It reports time disposition of an individual on each day of the reference week. This means that in addition to recording the activity being pursued, time intensity is also recorded in quantitative terms for each day of the reference week. If a person is engaged in economic activities for 4 hours he is considered employed for half day and if for more tan 4 hours then full day. According to the survey done by the Labour Ministry in 2011-12 the unemployment rate in India is 3.8%. Among the states unemployment rate is the least in Gujarat at 1% and high in Delhi and Maharashtra at 4.8% and 2.6% respectively. The States with highest unemployment rate were Kerala and West Bengal. Unemployment rate among women was 7%.
Unemployment Rate – The number of unemployed persons multiplied by 100 and divided by the total labour force.
As per the latest World Employment and Social Outlook report of the International Labor Organization (ILO) it is estimated that unemployment rate in India will increase by 3.5% from 2017 to 2018.Earliet it was expected to be 3.4%.
Indian Context
- The number of unemployed is likely to be 18.3 Million instead of 17.8.
- In terms of percentage the unemployment rate in India is expected to be stable at 3.5% through 2017, 2018 and 2019.
- 23 million new jobs will be created in Asia Pacific regions and new jobs will also be created in India and other south Asian Countries but the number of unemployed in the entire region will also increase.